The Unadorned

My literary blog to keep track of my creative moods with poems n short stories, book reviews n humorous prose, travelogues n photography, reflections n translations, both in English n Hindi.

जाते-जाते




जा ते - जा ते 

समझता हूँ मैं जो तुम सोचती हो

अपनी भावना की गठरी से कुछ तो मेरी तरफ़ बिखेरती होंगी  

है कहीं फासला तुम्हारी सोच और मेरी समझ के बीच ?


सब तो आते हैं मेले में,

आखिर मक्सद एक ही होता है

पर पहनावे में फर्क है क्योंकि

पहनते हैं हम जान-बूझकर,

करते हैं औरों को गुमराह

पर तुम जानती हो मेरे आने का मक्सद

और मैं जानता हूँ तुम्हारा ।


आ कर मेले में खाली हाथ लौटना मंजूर नहीं मुझे

तुम्हे भी एतराज़ है यात्रा तुम्हारी निष्फल हो रही है

सजधज कर, फिर घर से इतना दूर !   

चलो, ले लेते हैं एक दुसरे का बोझ

और चल पड़ते हैं अपने-अपने घरों में



अपनी-अपनी चूल्हे-चक्कियाँ करती हैं इंतज़ार....

घर बैठे, उन सबों के साथ

अंतरंगता के वही पुराने पन्नों को सहला कर  

सोचते जाएंगे

मेले में कुछ भूल तो नहीं गए !


समझता हूँ मैं जो तुम सोचती हो

अपनी भावना की गठरी से कुछ तो मेरी तरफ़ बिखेरती होंगी  

है कहीं फासला तुम्हारी सोच और मेरी समझ के बीच ?
   
=================
By
A N Nanda
Shimla
27-03-2015
================